एक अच्छी खासी नदी इंसानी हरकतों के से कैसे नाला बनकर रह जाती है, इसकी जीती-जागती मिसाल है देश की राजधानी दिल्ली में बहने वाली साहिबी नहदी। प्रदूषण की भयंकर मार के चलते आज इसे नजफगढ़ ड्रेन या नजफगढ़ नाले के नाम से जाना जाता है। इस नदी का न केवल नाम बदला है, बल्कि सरकार का इसके प्रति रवैया भी उसी प्रकार बदल गया है। अब नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल ने इसपर सरकार को लताड़ लगाते हुए कहा है कि साहिबी एक नदी है, लाना नहीं और इसे उसके पुराने स्वरूप में लाने के के लिए सरकार को कारगर कदम उठाने चाहिए।
साहिबी नदी कभी अरावली की पहाड़ियों से निकलकर धारूहेड़ा और रेवाड़ी होते हुए मसानी बैराज तक निर्मल जल लेकर बहती थी, अब औद्योगिक कचरे और सीवरेज के जहरीले मिश्रण से भर चुकी है। कभी दक्षिणी हरियाणा की जीवन-रेखा कही जाने वाली साहबी नदी आज प्रदूषण की चपेट में आकर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। इस पदी पर बने मसानी बराज से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए एनजीटी की प्रधान पीठ ने सख्त टिप्पणी की।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की प्रधान पीठ में शामिल न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी (न्यायिक सदस्य) और डाॅ. अफरोज़ अहमद (विशेषज्ञ सदस्य) सुनवाई के दौरान कहा कि साहबी नदी का मूल स्वरूप ‘नजफगढ़ ड्रेन’ के नाम के पीछे दब गया है, जो पर्यावरण और इस नदी दोनों ही के साथ अन्याय है।
कोर्ट ने कहा कि साहबी नदी एक स्वतंत्र प्राकृतिक जलधारा है। इसे केवल नाला या ड्रेन कहना इसकी आत्मा का अपमान है। इस नदी के मूल नाम और स्वरूप को पुनर्स्थापित किया जाना चाहिए। एनजीटी ने इस मामले में केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी आवश्यक पक्ष के रूप में शामिल करते हुए उन्हें रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।
पुनरुद्धार की ठोस योजना तैयार करे सरकार
बृहस्पतिवार को हुई सुनवाई में एनजीटी ने अपने आदेश में कहा कि राज्य सरकार दो सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करें। केंद्र का पर्यावरण मंत्रालय नदी के नाम साहबी को पुनर्स्थापित करने और उसके पुनरुद्धार पर अपना स्पष्ट पक्ष रखे। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नदी में प्रदूषण के स्रोतों की पहचान कर उसके समाधान की ठोस योजना पेश करें। इस मामले की अगली सुनवाई 31 अक्टूबर 2025 को होगी।
गांवों का भूजल तक हुआ दूषित
इस गंभीर पर्यावरणीय संकट को लेकर रेवाड़ी के गांव खरखड़ा के रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता प्रकाश ने एक याचिका दी थी। वर्ष 2022 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में दी गई उसी याचिका पर सुनवाई में यह निर्देश जारी किए गए हैं। याचिका में उन्होंने यह मुद्दा उठाया कि मसानी बैराज क्षेत्र में छोड़े जा रहे प्रदूषित जल से आस-पास के गांवों का भूजल दूषित हो रहा है। यह स्थिति सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए खतरा बन चुकी है।
जहरीले पानी का बड़ा स्रोत बना बैराज
धारूहेड़ा के पास स्थित मसानी बैराज, जो कभी वर्षा के पानी और साहबी नदी की स्वच्छ धारा से भरा रहता था, अब चारों ओर से आने वाले औद्योगिक अपशिष्ट, सीवरेज और रासायनिक जल से प्रदूषित हो चुका है। इस जहरीले पानी के कारण आस-पास के गांव खरखड़ा, मसानी, भटसाना, ततारपुर खालसा, खलियावास, तितरपुर, जीतपुरा, आलावलपुर, जड़थल, खिजुरी, धारूहेड़ा आदि का भूजल अत्यधिक दूषित हो चुका है। विभिन्न जांचों में पाया गया कि बैराज के आसपास के इलाकों में टीडीएस, फ्लोराइड, आयरन और मैग्नीशियम की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुंच चुकी है। नतीजतन, खेती की जमीन की उर्वरता घट रही है, पशुधन बीमार पड़ रहे हैं और लोगों को त्वचा एवं श्वसन संबंधी बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है।
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