- श्रीयश
देश में भूजल का घटता स्तर और सिंचाई के साधनों का अभाव धान की खेती करने वाले किसानों के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन चुका है। कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों की इस समस्या का समाधान डायरेक्ट सीडेड राइस (डीएसआर) के रूप में पेश किया है। इस तकनीक में धान की खेती के लिए खेत में पानी भर कर पौध रोपने की पारंपरिक विधि के मुकाबले काफी कम पानी का इस्तेमाल होता है, जिससे किसानों की लागत में भी कमी आती है।
देश में भूजल का लगातार गिरता स्तर और पारंपरिक सिंचाई साधनों की सीमित उपलब्धता धान की खेती करने वाले किसानों के सामने एक गंभीर संकट बन चुकी है। केंद्रीय भूजल बोर्ड (2022) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के लगभग 70% जिलों में भूजल स्तर चिंताजनक रूप से नीचे जा चुका है। हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में, जहां धान मुख्य फसल है, गर्मी के मौसम में भूजल स्तर औसतन 1 से 1.5 मीटर प्रतिवर्ष की दर से गिर रहा है। इस संकट को देखते हुए कृषि वैज्ञानिकों ने "डायरेक्ट सीडेड राइस" (DSR) तकनीक को एक व्यावहारिक समाधान के रूप में सामने रखा है। इस विधि में पारंपरिक तरीके की तरह खेत में पानी भरकर पौध रोपने की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि बीजों को सीधे खेत में बोया जाता है, जिससे 15 से 30% तक पानी की बचत होती है। पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (PAU) और इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च (ICAR) के अध्ययन बताते हैं कि DSR तकनीक न केवल जल बचाती है, बल्कि श्रम की आवश्यकता को भी लगभग 30% तक कम कर देती है। यह विधि एक हेक्टेयर में लगभग 3,000 से 4,000 लीटर पानी की बचत कर सकती है, जिससे किसान की लागत घटती है और खेती अधिक टिकाऊ बनती है। इसके अलावा, DSR तकनीक जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अधिक लचीली मानी जाती है, क्योंकि इसमें समय की भी बचत होती है और फसल जल्दी पकती है। इस प्रकार DSR एक ऐसी नवाचार आधारित कृषि तकनीक है जो न केवल जल संकट का समाधान देती है, बल्कि धान उत्पादकों की आर्थिक स्थिति को भी सशक्त बनाती है।
उत्तर प्रदेश में डीएसआर को बढ़ावा देने का बीड़ा उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद (उपकार) ने उठाया है।
- उपकार ने किसानों को दी डीएसआर विधि से चावल उगाने जानकारी
अपनी इसी कवायद के तहत उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद (उपकार) और यूपी एक्सेलेरेटर प्रगति कार्यक्रम ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में समृद्ध धान 2.0 डीएसआर विजन 2025 संगोष्ठी काआयोजन किया। इसमें क्षेत्रीय किसानों को डायरेक्ट सीडेड राइस (डीएसआर) के बारे में जानकारी दी। कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश में डीएसआर को बड़े पैमाने पर विस्तार की रणनीति बनाने के लिए प्रमुख हितधारकों के साथ चर्चा करते हुए जल संकट से जूझ रहे बुन्देलखण्ड को डीएसआर को बढ़ावा देने के लिए नये क्षेत्र के रूप में चुना गया।
इसमें बताया गया कि 2024 में डीएसआर की खेती 80,000 हेक्टेयर तक पहुंचने के बाद अब 2025 में इसे 100,000 हेक्टेयर तक पहुंचाना है। इसी के मद्देनजर इस कार्यक्रम का आयोजन चुनौतियों पर चर्चा करने और प्रगति की समीक्षा करने के लिए किया गया है। ताकि यूपी में डीएसआर के विकास के लिए एक मजबूत मंच मुहैया कराया जा सके। पिछले वर्ष 150 से अधिक क्षेत्र स्तरीय परीक्षणों ने डीएसआर के लाभों को सुदृढ़ किया, जिससे इस पद्धति की प्रभावशीलता में किसानों का विश्वास बढ़ा है।
विशेषज्ञों ने तक अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों को सही समय पर किसानों तक पहुंचाने और मशीनों के जरिये धान की खेती को उन्नत बनाने में उनकी सहायता को महत्वपूर्ण कदम बताया। साथ ही चर्चा में दीर्घकालिक स्थिरता के लिए प्रमुख प्रवर्तकों के रूप में कार्बन क्रेडिट बाजारों, फसल बीमा और सूक्ष्म सिंचाई के एकीकरण पर भी जोर दिया गया। इसके अलावा धान की फसल लेने के बाद फसल विविधीकरण को अपनाते हुए खेत की उर्वरता को बढ़ाने के लिए दलहन की खेती करने पर जोर दिया गया, जिससे मिट्टी को पोषण मिल सके और उसकी उत्पादकता में सुधार का लाभ किसानों को मिल सके।
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डॉ. संजय सिंह |
विश्व बैंक के 2030 डब्ल्यूआरजी (जल संसाधन समूह) के राज्य समन्वयक डॉ. योगेश बंधु आर्य ने टिकाऊ कृषि के व्यापक प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए कहा, डीएसआर न केवल जल संरक्षण करता है, बल्कि मिट्टी के स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाता है, जिससे यह जलवायु-स्मार्ट खेती का एक अनिवार्य घटक बन जाता है। कार्बन क्रेडिट तंत्र और पुनर्योजी प्रथाओं को एकीकृत करके हम किसानों के लिए दीर्घकालिक आर्थिक लाभ सुनिश्चित कर सकते हैं।
प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए यूपीसीएआर के उप महानिदेशक, डॉ. संजीव कुमार ने कहा, उत्तर प्रदेश में डीएसआर का विस्तार हमारे हितधारकों की सामूहिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है। आगे बढ़ते हुए, हमें इस गति को बनाए रखने के लिए ज्ञान-साझाकरण, समय पर इनपुट उपलब्धता और मशीनीकरण समर्थन के माध्यम से किसानों के विश्वास को मजबूत करना होगा।
चर्चा में शामिल होते हुए, डॉ. अंजलि पारसनिस, तकनीकी प्रमुख, 2030 डब्ल्यूआरजी (जल संसाधन समूह), विश्व बैंक, ने स्थिरता सुनिश्चित करने में नीति और नवाचार की भूमिका पर जोर देते हुए कहा, किसानों को डीएसआर को पूरी तरह अपनाने के लिए, हमें सही प्रोत्साहन देने की ज़रूरत है - चाहे वह सूक्ष्म सिंचाई सहायता, बीमा योजनाओं या जैव
उर्वरक अनुप्रयोगों के माध्यम से हो। ये उपाय एक लचीला और आर्थिक रूप से व्यवहार्य कृषि पारिस्थितिकी तंत्र बनाएंगे।
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