होलिका दहन को लेकर देशभर में तैयारियां पूरी हैं, पहले रात में होलिका जलाई जाएगी और फिर अगले दिन सुबह रंग-गुलाल उड़ाकर होली का जश्न मनाया जाएगा। लेकिन क्या आप जानते हैं, कि देश में एक गांव ऐसा भी है, जहां होली नहीं जलाई जाती, चलिए आपके बताते हैं कहां है वो गांव और क्यों नहीं जलाई जाती होली।
12वीं सदी से नहीं हुआ होलिका दहन
छत्तीसगढ़ में एक जिला है धमतरी। और धमतरी जिले का गांव है तेलिन सत्ती, इस गांव के नाम से लेकर इसमें होली नहीं जलाने की वजह भी अकल्पनीय और अविश्वसनीय लगती है, लेकिन मान्यता है तो यहां के लोग मानते भी है, यही वजह है कि 12वीं सदी से यहां आज तक होलिका दहन नहीं किया गया।
होली ना जलाने के पीछे है मान्यता
तेलिन सत्ती गांव में होली नहीं जलाई जाती। इसके पीछे एक महिला के सती होने की कहानी है, यहां लोग होली तो खेलते हैं लेकिन जलाते नहीं है, गांव वालों का मानना है कि जब-जब उन्होंने होली जलाने की कोशिश की, तब-तब गांव में कुछ अशुभ हुआ है,गांव वालों में यही धारणा सबसे बड़ी वजह बन गई होली नहीं जलाने की।
इस घटना के बाद से नहीं जली होली
होलिका दहन नहीं करने के पीछे के कारण और मान्यता को लेकर कहा जाता है कि 12 वीं शताब्दी में गांव का एक व्यक्ति तालाब का पानी रोकने खुद ही मिट्टी के बांध के साथ सो गया और उसकी मौत हो गई। जैसे ही ये ख़बर उसकी पत्नी को मिली तो वो सती हो गई। तबसे ही लोग इस महिला को सती के रूप में पूजने लगे और सती के सम्मान में होली नहीं जलाई गई।
गांव में नहीं जलती चिता
होली के बारे में हमने आपको बताया, लेकिन इस गांव में किसी की चिता भीं नहीं जलाई जाती। अगर गांव में कोई मर जाए तो पड़ोसी गांव की सरहद में जाकर चिता जलाई जाती है। गांव वाले मानते हैं कि अगर ऐसा नहीं किया जाता तो, गांव में कोई न कोई परेशानी आती है। इतना ही नहीं गांव में रावण दहन भी नहीं किया जाता।
ऐसे पड़ा गांव का नाम
कहानी पढ़कर आप समझ ही गए होंगे, चलिए हम आपको बताते हैं। गांव का नाम भी उसी सती के नाम पर तेलिन सत्ती पड़ गया, जिसने अपने पति की मौत के बाद प्राण त्याग दिए थे, गांव के लोंगों के बीच सती पूजनीय है और लोग मानते हैं कि गांव में चिता जलाना सती को नाराज़ करने जैसा है।
इसे अंधविश्वास कहें या परंपरा, लेकिन सच यही है कि छत्तीसगढ़ के गांव तेलिन सत्ती में लोग आज भी होलिका दहन नहीं करते हैं।
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