बंगलुरु में प्रस्तावित ‘हेब्बल-सिल्क बोर्ड सुरंग सड़क परियोजना’ शहर में जल-संकट की समस्या को बढ़ा सकती है। भूमिगत सड़क बनाने के लिए ज़मीन से 120 फीट नीचे बनने वाली सुरंग से बंगलुरु की भूमिगत जलसंचयन प्रणाली को गंभीर रूप से प्रभावित होने की आशंका है। इस परियोजना के तहत शहर की ट्रैफिक व्यवस्था को सुधारने और मौजूदा सड़क नेटवर्क पर वाहनों की भीड़ कम करने के लिए सतह के नीचे लगभग 100 किलोमीटर लंबी सुरंग सड़कें बनाई जाएंगी। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की खुदाई झीलों और भूमिगत जलवाहक परतों (aquifers) के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा बन सकती है। इससे भूजल से होने वाली जलापूर्ति प्रभावित हो सकती है। यह बंगलुरु में जल-संकट को बढ़ा देगी, क्योंकि शहर में 20 से 30 फीसदी जलापूर्ति भूमिगत जल स्रोतों से की जाती है।
डॉ. रामचंद्र बताते हैं कि कनकपुरा रोड, हुलीमावु और अगारारा झील जैसी कई झीलों के आसपास सुरंग निर्माण के दौरान ज़मीन की पारगम्य परतें (percolation layers) टूट सकती हैं, जिससे इन झीलों से भूजल में होने वाला रिसाव तेज़ हो सकता है। इससे झीलों के सूखने का खतरा बढ़ जाएगा, जैसा कि हाल ही में कावेरी चरण-5 परियोजना के दौरान देखा गया था।
यदि यह परियोजना बिना किसी समग्र हाइड्रोजियोलॉजिकल स्टडी या स्थानीय जलप्रवाह नक्शे को ध्यान में रखे ही आगे बढ़ाई जाती है, तो यह बेंगलुरु की पहले से ही असंतुलित जलापूर्ति व्यवस्था—जो वर्तमान में कावेरी और बोरवेल्स पर निर्भर है—को और अधिक संकट में डाल सकती है।
डॉ. टी.वी. रामचंद्र का कहना है कि मेट्रो टनल जैसी गहरी खुदाई से बेंगलुरु के जेयनगर, बासवनगुड़ी, कनकपुरा रोड, अगारा झील और हुलीमावु जैसे क्षेत्रों में पहले ही भूजल स्रोत बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। ऐसे में इस नई भूमिगत सड़क परियोजना से भूजल रिचार्ज क्षमता में लगभग 30 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। वे बताते हैं कि अगारा झील और हुलीमावु झील जैसे पारगम्य जलाशय आसपास की भूजल परतों (aquifers) से जुड़े होते हैं। यदि इस प्रकार की जमीन के नीचे सुरंग निर्माण होती है, तो भूजल मार्ग बाधित हो सकते हैं। इससे झीलों से भूजल में रिसाव कम हो सकता है या असामान्य तरीके से बढ़ सकता है, जिससे ये झीलें समय से पहले सूख सकती हैं।
डॉ. रामचंद्र का स्पष्ट कहना है कि इस प्रकार की किसी भी बड़ी भूमिगत निर्माण परियोजना को आगे बढ़ाने से पहले भूजल स्तर, आर्टेसियन प्रणाली, झीलों की पारगम्यता और aquifer मैपिंग का वैज्ञानिक अध्ययन आवश्यक है। इस परिप्रेक्ष्य में, यदि सुरंग सड़क परियोजना को पर्यावरणीय और जल सुरक्षा मानदंडों के बिना शुरू किया जाता है, तो वह बेंगलुरु की जल स्थिरता के लिए एक गंभीर जोखिम बन सकती है।
क्या है पूरा प्रोजेक्ट?
कर्नाटक सरकार 40,000 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाली विशाल भूमिगत सड़क नेटवर्क परियोजना पर काम कर रही है। इसके पहले चरण की के तहत हेब्बल-सिल्क बोर्ड (एचएसआर लेआउट) तक सुरंग सड़क बनाने की अनुमानित लागत 19,000 करोड़ रुपये है। इसमें लगभग 16–17 किमी लंबा वाहन सुरंग मार्ग प्रस्तावित है, जिसकी गहराई लगभग 120 फीट ( 30 मीटर) होगी। यह छह‑लेन टनल 'ट्विन-ट्यूब' के रूप में बनाया जाएगा, जिसमें प्रत्येक टनल तीन लेन की होगी और इसमें आठ टनल बोअरिंग मशीनों (TBMs) का उपयोग किया जाएगा। इसे दो खंडों में विभाजित किया गया है।पहला चरण हेब्बल से शेषाद्रि रोड तक, दूसरा शेषाद्रि रोड से सिल्क बोर्ड तक। दोनों खंडों का निर्माण 50 महीनों में पूरा करने की योजना है। इस चरण की अनुमानित लागत ₹17,780 से ₹17,698 करोड़ तक आंकी गई है, जिसमें 40% राशि वायबिलिटी गैप फंडिंग के ज़रिये BBMP देगा। निर्माण पूरा होने पर निजी कंपनी ठेके पर इसे BOT/BOOT मॉडल पर 30–34 वर्षों तक ऑपरेट करेगी। इस परियोजना के पीछे राज्य सरकार का उद्देश्य यात्रा समय को वर्तमान लगभग 60 मिनट से घटाकर 20–25 मिनट करना है। हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि ऐसे प्रोजेक्ट केवल अस्थायी समाधान दे सकते हैं, क्योंकि शहर में प्रति दिन लगभग 3,000 नए वाहन पंजीकृत हो रहे हैं। जबतक शहर में वाहनों की संख्या पर लगाम नहीं लगाई जाती, तबतक ट्रैफिक की समस्या खत्म नहीं होने वाली। विशेषज्ञों का कहना है कि कागज़ पर यह परियोजना भले ही आशाजनक लगे, लेकिन इसमें इससे शहर के भविष्य को एक स्थायी और अपूरणीय क्षति हो सकती है।
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